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मासूम मुस्कान और समझदारी

  • Writer: Deepak RS Sharma
    Deepak RS Sharma
  • Mar 21, 2021
  • 1 min read

एक निरपराध दौर था उम्र का, जब सच्चाई ज्यादा थी,

समझदारी थोड़ी कम थी । जब अच्छाई ज्यादा थी, गुनेहगारी थोड़ी कम थी ।। इक कैनवास सा था वक्त वो । जिसमें बेशुमार ख्याल थे । जिंदगी को लेकर अनेकों सवाल थे । ख्याल आज भी हैं सवाल आज भी हैं ।। तब जवाब नही थे, पर हौंसले मजबूत थे । आज जवाब हैं तो हौंसले पस्त हैं।। वो दौर मदमस्त था,

वो दौर जबरदस्त था । ये मदहोशी का दौर है,

जबरदस्ती का दौर है ।।


दौर करवटें लेता गया ।

समझदारी बढ़ती गई ।

सच्चाई घटती गई ।। गुनेहगारी बढ़ती गई,

अच्छाई घटती गई ।। उस उम्र की मिठास कहीं

बूंदियों सी बंटती गई ।। किसी ने समझा प्रसाद

माथे लगाकर खाई ।

कहीं कदमों तले रूलती गई ।।

उस दौर की तस्वीरें हैं

जो हंस रही है हमपर ।

बिना कहे कुछ भी,

तंज कस रही है हमपर ।। तुमने समझदारी का चोगा पहन लिया,

मैने मुस्कान ओढ़ी है । तुम्हारे माथे की लकीरें,

मुस्कान की झुर्रियों से गाढ़ी है । मुस्कुराहट का मोल तुम

समझदारी से चुकाना चाहते हो । पर अंदर ही अंदर बस

मेरी तरह मुस्कुराना चाहते हो ।।

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