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आज मैं हिन्दू नहीं -धर्म निरपेक्षता पर कविता

  • Writer: Deepak RS Sharma
    Deepak RS Sharma
  • Jul 25, 2020
  • 1 min read


आज मैं हिन्दू नहीं हिंदुस्तानी बनकर बोल रहा हूँ,

दिल के रिश्तों में पड़ी गांठों को चुन-चुनकर खोल रहा हूँ।

भाई मेरे तुम बात मेरी हिंदुस्तानी बनकर ही सुनना,

राष्ट्रहित में जो उचित हो उसी राह को तुम चुनना।।


एक बगिया के फ़ूल हैं हम बागबाँ जिसकी भारत माँ,

अपने बच्चों में भेद कभी करती है कहाँ कोई भी माँ।

छलनी हुआ आँचल उसका उसने तो शिकवा किया नहीं,

अकेली बैठी बिलख रही जो तेरी माँ वो मेरी माँ।।


धर्म के नाम पर लड़ते हम उसकी तो कोई खता नहीं,

अपनों के खून पर ख़ुश रहे वो कौनसा धर्म है पता नहीं।

हिन्दू, मुस्लिम, सिख ईसाई मिलकर क्या अद्भुत वतन बना देते,

वृक्ष से अलग होकर फले-फूले ऐसी तो कोई लता नहीं।।


भारत माँ के बेटे, भाई मेरे एक बात मुझे तुम बतलाओ,

मज़हबी खूनी हुडदंग में जो तमगे मिले तुम दिखलाओ।

वो कौनसा भगवान-ख़ुदा है जो अपनी रक्षा खुद नहीं कर सकता,

उस परम शक्ति की हिफाज़त तुम कैसे करोगे सिखलाओ।।


सियासतदानों की चिनी दीवारें इतनी ऊंची कैसे हो सकती हैं,

झूठ के खंजरों से दिल की ज़मी पर लकीरें कैसे खिंच सकती हैं।

शिकवे-गिले तो हम बतलाकर भी हल कर लेते,

सीने में गड़ी तलवार कोई निष्कर्ष कैसे हो सकती है।।


मज़हब कमरा हो सकता है पर घर तो वतन ही है मेरा,

प्यार भरे दो बोल पे वारी धन क्या तन मन भी मेरा।

दिलवालों के देश भारत में रहते मिलकर हम सभी,

फिर ऐ हिंदुस्तानी... क्या तेरा क्या मेरा।।





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