पिता के प्रेम और त्याग को समर्पित - कविता
- Deepak RS Sharma
- Jul 22, 2020
- 1 min read
आसमान से ऊंची ऊंचाई जिनकी
बनना चाहते हम परछाई जिनकी |

नज़र में बसाए दुआ है जो
बाहों में छुपाए सारा जहां है जो
उंगली पकड़कर चलना सिखाया हमें
पीठ पर बिठाकर झूला झुलाया हमें
कंधे पर बिठाकर दी हमें दुनिया की सीख
तड़प उठते जो एक पल में सुनकर हमारी चीख
जिनके हाथ की हमेशा रही हम पर छत्र छाया,
बेशुमार प्यार दिया पर कभी नहीं जताया,
अपने जज्बातों का कोश हरदम हमपर लुटाया,
खुद ना जाने हमारे लिए क्या खोया क्या पाया।
जरूरत पड़ने पर पूरी सख्ती भी दिखाई,
उदासी के लम्हों में सच्ची दोस्ती भी निभाई,
हमेशा रोकते रहे टोकते रहे जाने से गलत राह पर,
मरहम बनकर खड़े रहे हर छोटी सी आह पर।
हर तरह से उनका हमपर कर्जा है,
ज़माना बताता पिता उन्हें,
हमारे लिए भगवान के बराबर उनका दर्जा है,
राम करे ज़िन्दगी में उनका नाम रोशन करें,
वो दिन आए जब वो सच में हम पर फ़क़्र करें।।
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